देवभूमि के कमलेश्वर महादेव..यहां खड़रात्रि पूजा से होती है संतान प्राप्ति!
मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी के अवसर पर श्रीनगर के भगवान शिव के मंदिर कमलेश्वर में जो भी दंपति सच्चे मन से भगवान शिव की आराधना करते हैं उनको संतान प्राप्त होती है।
Nov 30 2020 11:03AM, Writer:Komal Negi
उत्तराखंड की भूमि देवों की भूमि के नाम से प्रचलित है। यहां पर ऐसी कई जगह मौजूद हैं जिस पर लोगों का अटूट विश्वास है और वह विश्वास सदियों से चला आ रहा है। कई जगहें ऐसी अस्तित्व में हैं, जहां पर आस्था विज्ञान के ऊपर भारी पड़ता है और ऐसे कई चमत्कार हो जाते हैं जिनके बारे में कल्पना करना भी हमारे लिए मुश्किल है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके ऊपर कई लोगों का वर्षों से अटूट विश्वास रहा है। हम बात कर रहे हैं श्रीनगर के कमलेश्वर मंदिर की। यह मंदिर कई वर्षों पुराना है और सैकड़ों लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं। आज का दिन बेहद खास है और इस दिन मंदिर के अंदर अलग ही रौनक देखने को मिलती है। कोरोना काल के बीच में हजारों लोगों की भीड़ कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी यानी कि आज के दिन कमलेश्वर मंदिर में हर साल लगती है। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से मांगने पर निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि जो भी दंपति सच्चे मन से कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करते हैं उनको अवश्य ही संतान की प्राप्ति होती है जिस कारण आज श्रीनगर के कमलेश्वर के मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी हुई।
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कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी के शुभ दिन के अवसर पर जो भी निसंतान दंपति सच्चे मन से इस मंदिर में आकर भोलेनाथ को याद करता है उनको संतान प्राप्ति अवश्य होती है। भले ही इस बात पर विज्ञान भरोसा ना करे मगर कमलेश्वर मंदिर में यह कई सालों से मान्यता चलती आ रही है और इस दिन कई निसंतान दंपति संतान प्राप्ति के लिए इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी हुई है। कोरोना काल के बीच में भी भगवान शिव के दरबार में लोगों की आवाजाही सुबह से हो रही है। चलिए आपको कमलेश्वर मंदिर के उस अनुष्ठान के बारे में बताते हैं जिसका पालन कर निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति है। कमलेश्वर मंदिर में " खड़ा दीया " की एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है इस खड़े दीए के लिए आज सुबह से 108 दंपत्ति पहुंच चुके हैं। इस खड़े दीए के अनुष्ठान में भाग लेने के लिए देश के कोने-कोने से लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था और उनमें से 108 दंपति अनुष्ठान में भाग लेने के लिए मंदिर परिसर पहुंचे। आइए आपको बताते हैं कि यह खड़े दीए का अनुष्ठान आखिर क्यों माना जाता है और क्यों लोगों की इसके ऊपर अपार श्रद्धा है।
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मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की प्राप्ति के लिए कमलेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी और व्रत के अनुसार भगवान विष्णु को सौ कमल शिव की आराधना के दौरान शिवलिंग में चढ़ाने थे मगर भगवान शिव ने उनकी भक्ति के परीक्षा के लिए 99 कमल के बाद एक कमल को छुपा दिया जिसके बाद अपनी भक्ति को साबित करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने ही एक नेत्र को कमल के जगह अर्पण कर दिया। जिसके बाद विष्णु की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने उनको सुदर्शन चक्र दिया और उसके बाद से ही भगवान विष्णु के नेत्रों को कमलनयन भी कहा जाता है। माना जाता है कि विष्णु भगवान की पूजा को एक निसंतान दंपति अपनी आंखों से स्वयं देख रहा था जिसके बाद उन्होंने भी इसी विधि-विधान से भगवान की पूजा अर्चना की और उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई। उस समय एक निसंतान दंपति भी अपनी आंखों से स्वयं देख रहा था जिसके बाद उन्होंने भी इसी विधि-विधान से भगवान की पूजा अर्चना की और उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। तबसे "खड़े दीए" की यह परंपरा चली आ रही है और संतान प्राप्ति के लिए आज के दिन दंपति यह अनुष्ठान करते हैं। आज श्रीनगर में कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी के दिन कई लोग मंदिर में दर्शन के लिए आ रहे हैं और मंदिर परिसर में व्यवस्थाओं को बनाने के लिए पुलिस बल ने विशेष इंतजाम किए हैं। भीड़ को देखते हुए अन्य जिलों से अतिरिक्त पुलिस बल श्रीनगर में तैनात किया गया है।