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देवभूमि का पवित्र सतोपंथ: यहां एकादशी पर स्नान करते हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश..पढ़िए अद्भुत मान्यता

बदरीनाथ धाम के वेदपाठी एवं प्रकाण्ड विद्वान रविन्द्र भट्ट जी द्वारा इस अद्भुत कथा का वर्ण किया गया है...आप भी पढ़िए
Sep 9 2021 12:11PM, Writer:आचार्य रविन्द्र भट्ट

मान्‍यता है कि महाभारत काल में पांडव इसी रास्‍ते से स्‍वर्ग की ओर गए थे। यही वजह है कि इस झील का नाम सतोपंथ पड़ गया। इसके अतिरिक्त यह भी बताया जाता है कि जब पांडव स्‍वर्ग की ओर जा रहे थे और एक-एक करके उनका देह त्याग हो रहा था तो इसी स्‍थान पर भीम का शरीर शान्त हुआ था। इसलिए भी इस जगह का महत्‍व माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने स्‍वर्गारोहण यात्रा में इसी पड़ाव पर स्‍नान-ध्‍यान किया था। इसके पश्चात् उन्‍होंने आगे की यात्रा की थी। इसलिए भी इसे अत्‍यंत पवित्र झील माना जाता है। इसके अलावा एक यह भी कथा मिलती है कि इसी स्‍थान के आगे स्वर्गारोहिणी नामक स्थान पर धर्मराज युधिष्ठिर के लिए स्‍वर्ग तक जाने के लिए आकाशीय वाहन आया था।
अभी तक आपने गोल या फिर लंबाई के आकार वाली झील देखी होगी। लेकिन सतोपंथ झील का आकार तिकोना है। मान्‍यता है कि यहां पर एकादशी के पावन अवसर पर त्रिदेव( ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश) अलग-अलग कोनों पर खड़े होकर डुबकी लगाते हैं। इसलिए इसका आकार त्रिभुजाकार यानी कि तिकोना है। झील के आकार की ही तरह इसके अस्तित्‍व को लेकर भी कई मान्‍यताएं हैं। इनमें से एक यह है कि सतोपंथ में जब तक स्‍वच्‍छता रहेगी त‍ब तक ही इसका पुण्‍य प्रभाव रहेगा। यही वजह है कि झील की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। आगे पढ़िए

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स्कन्दपुराण में वर्णित है कि
त्रिकोणमण्डितं तीर्थ नाम्ना सत्यपदप्रदम् ।
दर्शनीय प्रयत्नेन सर्व: पापमुक्षुभिः ||
जो त्रिकोणाकेकार तीर्थ है, जिसका नाम सत्यपद तीर्थ है ओर जो सत्यपद को देने वाला भी है, जो अपने सब पापों से छूटने को इच्छा रखते हों उन्हें इस परम पावन पवित्रतम पाप नाशक तीर्थ को प्रयत्न के साथ देखना चाहिये। सचमुच में बात तो ऐसी ही है। बड़े प्रयत्न से बड़े साहस से सत्यपथ तीर्थ के दर्शन होते हैं, और होते हैं सच्ची लगन वाले साहसी पुरुषों को। लगभग 200 हाथ लम्बा यह सुन्दर स्वच्छ सरोवर होगा। एकदम निर्मल जल है, आस-पास गुफायें बनी हैं उन्हीं में यात्री ठहरते हैं। एक दण्डी स्वामी कई वर्ष यहाँ अकेले बारहों महीने रहते थे। वे कच्चा आटा और कच्चे आलू खा लेते थे। उनकी गुफा भी बनी है। इसके माहात्म्य के सम्बन्ध में यहाँ तक लिखा है कि
जपं तपो हरिःक्षेत्रं पूजां स्तुत्यभिवन्दनम् ।
माहात्म्यं कुवतां वक्तुं ब्रह्माणाऽपि न शक्यते ||
यहाँ पर जो जप, तप, स्तुति पूजा, नमस्कार आदि पुण्य क्रिया की जाती है उसके फल को ब्रह्मा भी नहीं कह सकते। फिर हम अल्पज्ञ प्राणी इसके सम्बन्ध में और अधिक कह ही क्या सकते हैं।
सतोपंथ झील से कुछ दूर आगे चलने पर स्‍वर्गारोहिणी ग्‍लेशियर नजर आता है। जिसे स्‍वर्ग जाने का रास्‍ता भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस ग्‍लेशियर पर ही सात सीढ़‍ियां हैं जो कि स्‍वर्ग जाने का रास्‍ता हैं। हालांकि इस ग्‍लेशियर पर अमूमन तीन सीढियां ही नजर आती हैं। बाकी बर्फ और कोहरे की चादर से ढकी रहती हैं। बदरिकाश्रम हिमालय


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