देवभूमि का अमृत: पीलिया, डायबिटीज और गंभीर बीमारियों का अचूक इलाज है ‘त्रायमाण’
उत्तराखंड की धरती जैव विविधताओं के लिए जानी जाती है। पुराने लोग यहां उगने वाली जड़ी बूटियों से ही स्वस्थ रहते थे। इन्हीं में से एक है त्रायमाण
Oct 29 2018 1:10PM, Writer:कपिल
उत्तराखंड औषधियों का भंडार है और ये बात आज किसी से छुपी नहीं है। इन्हीं में से एक औषधि से त्रायमाण, जो पहाड़ों में कुछ एक जगहों पर ही उगती है। आज ये औषधि विल्पुत होने की कगार पर है लेकिन इसके बेमिसाल फायदे जानकर आपको भी अचंभा होगा। वैज्ञानिक भाषा में त्रायमाण का नाम जेंटियाना कुरू रॉयल है। अब उत्तराखंड में ये औषधि सिर्फ चकराता और नरेन्द्रनगर की कुछ पहाड़ियों पर चट्टानों के बीच उगती है। हालांकि इस अनमोल खजाने को बताने के लिए वन विभाग की रिसर्च विंग सामने आई और एक शानदार काम कर दिखाया। कठिन मेहनत के दम पर पहली बार त्रायमाण को देववन रिसर्च सेंटर की नर्सरी में उगाया गया है। आइए अब आपको बताते हैं कि किस तरह से त्रायमाण स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है।
यह भी पढें - उत्तराखंड में लोग डेंगू से परेशान हैं, इसका इलाज भी उत्तराखंड में ही है..ये है वो पहाड़ी फल!
त्रायमाण की तासीर गर्म होती है। ये शरीर से कफ और पित्त जैसे रोगों को पल भर में दूर कर देता है। इसके अलावा ये रक्त शोधक भी कहा जाता है, यानी शरीर के खून को साफ करने वाली जड़ी। पेट के कीड़ों को नष्ट करने में त्रायमाण अहम भूमिका निभाता है। इसके साथ ही सफेद दाग, बवासीर, पेट का दर्द, पीलिया और जिगर के रोगों में भी त्रायमाण एक असरदार जड़ी है। त्वचा के रोगों में त्रायमाण की राख को नीबूं के रस या फिर घी में मिलाकर लगाने से काफी मिलता है। बताया जाता है कि उत्तराखंड में 1960 के दशक से त्रायमाण का जमकर दोहन हुआ। इस वजह से ये अब विलुप्त होने की कगार पर है। फिलहाल उत्तराखंड में चकराता की कनासर रेंज और नरेंद्रनगर की सकलाना रेंज की खड़ी चट्टानी पहाड़ियों पर त्रायमाण उगता है ।
यह भी पढें - उत्तराखंड में लोग डेंगू से परेशान हैं, इसका इलाज भी उत्तराखंड में ही है..ये है वो पहाड़ी फल!
बताया जाता है कि त्रायमाण की खूबियों ही उसके लिए संकट की वजह बन गई हैं। 1960 के दशक से शुरू हुए इसके दोहन की वजह से आज ये अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में है। इसी वजह से उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड ने त्रायमाण को विलुप्त होने वाली वनस्पतियों की लिस्ट में रखा है। अब त्रायमाण के संरक्षण के लिए चकराता और नरेंद्रनगर वन प्रभाग की पहाड़ियों पर कुछ जगहों को चिह्नित किया गया है। इस जगहों की चट्टानों के बीच ये प्राकृतिक रूप से उगता है। चकराता वन प्रभाग के ही अंतर्गत आने वाले देववन रिसर्च सेंटर में त्रायमाण के पौधे नर्सरी में उगाने के प्रयास किए गए। फिलहाल करीब 2 हजार पौधों पर फूल खिले हैं। अच्छी बात ये है कि इस वनस्पति के संरक्षण की दिशा में ये पहला कदम है।