उत्तराखंड का श्रीदेव सुमन सुभारती कॉलेज सील, सुप्रीम कोर्ट को ही गुमराह कर रहा था
आखिरकार देहरादून स्थित श्रीदेव सुमन सुभारती कॉलेज को सील कर दिया गया है। अब राज्य सरकार इस कॉलेज को चलाएगी।
Dec 7 2018 1:45PM, Writer:कपिल
सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर दिया ? देहरादून में नंदा की चौकी के पास स्थित मेडिकल कॉलेज पर सीलिंग कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर ये कार्रवाई की गई है। एसडीएम विकासनगर जितेंद्र कुमार के नेतृत्व में सीलिंग की कार्रवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि ये तय हो गया है कि कॉलेज प्रबंधन ने कोर्ट को गुमराह किया। कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक को आदेश दिया कि वो तुरंत कॉलेज को सील करें। साथ ही सरकार की तरफ से मौजूद एडवोकेट जनरल जेके सेठी के उस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि सात दिसंबर की सुबह उत्तराखंड सरकार मेडिकल कॉलेज का अधिग्रहण करे और उसे खुद संचालित करे। अब जानिए कि ये मामला क्या है।
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दो साल पूर्व एमसीआई यानी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने सुभारती मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण कर तमाम खामियां पाई थीं। जांच में पाया था कि मेडिकल कॉलेज और अस्पताल जिस जमीन पर स्थित है, उसके खसरे अलग-अलग जगहों पर हैं। इस आधार पर एमसीआई ने कॉलेज की मान्यता रद कर दी थी। वहीं मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रबंधक और मौजूदा प्रबंधकों के बीच संपत्तियों को लेकर देहरादून की जिला अदालत में एक, डिवीजन कोर्ट में एक और विकासनगर की डिवीजन कोर्ट में एक वाद चल रहा था। उधर, एमसीआई की मान्यता के खिलाफ मेडिकल कॉलेज प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट चला गया, जहां से उन्हें मेडिकल कॉलेज और अस्पताल संचालन के लिए स्टे मिल गया।
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30 अगस्त 2017 को कॉलेज प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में MBBS में दाखिले कराने की अर्जी दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर 2017 में दाखिले के आदेश जारी किए। इसके बाद मनीष वर्मा नाम के शख्स ने खुद को संपत्ति का मालिक बताया और सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली। इस बीच कॉलेज के छात्रों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। ये छात्र कॉलेज की मान्यता को लेकर पसोपेश में थे। तब से इस मामले में सुनवाई चल रही है। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और MCI यानी मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया का पक्ष जाना और पाया कि ये संपत्ति श्रीदेव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज की नहीं है। ये भी पाया गया कि कॉलेज संचालकों ने कोर्ट में गलत तथ्य पेश किए।