पहाड़ के बुजुर्ग दादाजी के हाथों का जादू, ये हुनर से रिंगाल में जान फूंकते हैं..देखिए तस्वीरें
63 साल के दरमानी लाल रिंगाल से लैंप शेड, टी-ट्रे, डस्टबिन, बॉस्केट जैसी अनगिनत चीजें बनाते हैं..पत्रकार संजय चौहान के फेसबुक पेज से साभार एक खूबसूरत कहानी पढ़िए..तस्वीरें भी देखिए
Dec 18 2019 7:06PM, Writer:कोमल नेगी
राज्य समीक्षा के जरिए हम उत्तराखंड की लोक कलाओं, हस्तशिल्प और संस्कृति को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि पहाड़ की लोक कलाएं, यहां का हस्तशिल्प संरक्षित हो, और ऐसा तभी होगा जब हम उत्तराखंड के हस्तशिल्प का संरक्षण करने वाले लोगों के बारे में जानेंगे। इस श्रृंख्ला में हम आपको हस्तशिल्पी दरमानी लाल के बारे में बताएंगे। जिनके हाथों के जादू से बेजान चीजें भी कलाकृति का रूप ले लेती हैं। चमोली की बंड पट्टी में एक गांव है किरूली, 63 साल के दरमानी लाल इसी गांव में रहते हैं। वो रिंगाल के रेशों से उत्पाद बनाते हैं। ये काम वो पिछले 40 साल से कर रहे हैं। वो रिंगाल से लैंप शेड, टी-ट्रे, डस्टबिन, बॉस्केट जैसी अनगिनत चीजें बनाते हैं। उनके काम का हर कोई मुरीद है। रिंगाल से सामान बनाना उत्तराखंड का पुरातन हस्तशिल्प है, लेकिन क्योंकि अब ऐसे सामान की जगह प्लास्टिक ने ले ली है, इसीलिए उत्पाद बनना भी कम हो गए हैं। बड़े-बूढ़े लोग किसी तरह अपने पुरखों की कला को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हैं, पर उनकी आने वाली पीढ़ी इसे व्यवसाय के तौर पर नहीं अपनाना चाहती। आगे देखिए तस्वीरें..आप इनसे सम्पर्क कर सीधे फोन पर डिमान्ड भी दे सकते हैं। राजेंद्र 8755049411
देखिए रिंगाल का कमाल
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उत्तराखंड में ऐसे करीब 50 हजार से ज्यादा हस्तशिल्पी हैं जो कि हस्तशिल्प कला को जिंदा रखे हुए हैं। ये रिंगाल, बांस, ऐपण और नेटल फाइबर से प्रोडक्ट बनाते हैं।
ये है हाथों का जादू
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इस काम में मेहनत ज्यादा है और पैसा कम, इसीलिए युवा पीढ़ी रोजगार के दूसरे ऑप्शन देखती है। लेकिन इस मामले में अपना चमोली जिला थोड़ा अलग है। यहां कुलिंग, पज्याणा, पिंडवाली, डांडा, मज्याणी और बूंगा जैसे कई गांवों में आज भी रोजगार का मुख्य जरिया हस्तशिल्प ही है।
आप भी इनकी मदद करें
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इन्हीं हस्तशिल्पियों में से एक दरमानी लाल भी हैं। उनका बेटा राजेंद्र भी कलाकृतियां बनाने में पिता की मदद करता है। उत्तराखंड के हस्तशिल्प को बचाना है तो हम सभी को मिलकर काम करना होगा।
पहाड़ का हस्तशिल्प बचाएं
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हस्तशिल्प को सराहें और इन्हें खरीदें भीं। जो लोग इनके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं उनकी मदद करें। क्योंकि हमारी लोक कलाएं रहेंगी, तभी हमारी पहचान भी बनी रहेगी।