गढ़वाल के शूरवीर ने विदेश में अपने हुनर से कमाई शोहरत..गांव के लिए खोले तरक्की के द्वार
शूरवीर सिंह अपने क्षेत्र के पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने रोजगार के लिए विदेश का रूख किया। बाद में उन्हें देखकर गांव के दूसरे युवाओं ने भी विदेश की राह पकड़ी
Jan 8 2021 2:51PM, Writer:Komal Negi
हम अपने देश में रहें या ना रहें, लेकिन हमारा देश हम में जिंदा रहना चाहिए। दूसरे देशों में बसे उत्तराखंडी प्रवासियों ने इस मूलमंत्र को अपने जीवन में उतार लिया है। ये उत्तराखंड की गौरवशाली संस्कृति और परंपरा के दूत हैं। अपने क्षेत्र के विकास और युवाओं को आगे बढ़ाने में भी विशेष योगदान दे रहे हैं। प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर हम आपको टिहरी के रहने वाले शूरवीर सिंह तोमर के बारे में बताएंगे। वो अपने क्षेत्र के पहले ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने रोजगार के लिए विदेश का रूख किया। बाद में उन्हें देखकर गांव के दूसरे युवाओं ने भी विदेश की राह पकड़ी और अपने परिवार-गांव के लिए तरक्की के द्वार खोले। 65 वर्षीय शूरवीर सिंह थातीकठूड़ बूढ़ा केदार क्षेत्र के रहने वाले हैं। अस्सी के दशक में क्षेत्र में नौकरी मौके कम थे। इसलिए साल 1984-85 में वो जॉब के लिए मॉल्टा चले गए। तब उनकी उम्र करीब 23 साल थी। कुछ साल बाद वो मुंबई लौटकर यहां के होटल एंबेसडर में काम करने लगे। एक बार ओमान के सुल्तान का कुक स्टाफ मुंबई के होटल एंबेसडर में आया। ये लोग शूरवीर के काम से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्हें मस्कट आने का न्योता दे दिया। इस तरह शूरवीर मस्कट चले गए और सुल्तान का किचन संभालने लगे। आगे पढ़िए
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यहीं से उनकी जिंदगी में बदलाव आया, तरक्की होने लगी। वो महल के खास कर्मचारियों में शामिल हो गए। उनका परिवार भी विदेश चला गया। शूरवीर भले ही विदेश में रहने लगे, लेकिन गांव को कभी नहीं भूले। वो गांव वालों के लिए अक्सर गिफ्ट्स भेजा करते थे। क्षेत्र के लोग अक्सर कहते थे कि शूरवीर विदेश में राजा के साथ रहता है। उन्होंने मस्कट में करीब 30 साल बिताए। सुल्तान के साथ करीब 15 देशों का भ्रमण किया। शूरवीर अब अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं। उनका बड़ा बेटा इंजीनियर है और परिवार संग सिडनी में रहता है। छोटा बेटा होटल में अधिकारी है। शूरवीर बताते हैं कि गांव में रोजगार का साधन न होने की वजह से उन्हें विदेश जाना पड़ा था। आज उन्हें देखकर क्षेत्र के पांच-छह सौ लोग बाहर होटल या अन्य जगहों पर काम कर रहे हैं। हम भले ही कहीं भी रहें, लेकिन अपने देश-गांव को हमेशा याद रखें। उसकी तरक्की के लिए काम करें, यही हमारा प्रयास रहना चाहिए।