बदरीनाथ धाम से जुड़ी बेमिसाल परंपरा, सिर्फ कुंवारी कन्याओं को दिया जाता है ये काम
आज हम आपको बदरीनाथ धाम की एक बेमिसाल परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं। आप भी जानिए
Nov 21 2017 2:28PM, Writer:आकांक्षा
बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय हो गई है। जिस दौरान बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं। उस दौरान सुबह से ही बाबा के महाभिषेक पूजा शुरू हो जाता है। मंदिर में सुबह से वेद ऋचाओं का वाचन किया जाता है। इसके बाद वेदपाठियों द्वारा गुप्त मंत्रों से भगवान बदरीनाथ का आह्वान किया जाता है। धार्मिक परंपरा के मुताबिक रावल माता लक्ष्मी का वेश धारण करते हैं और इसके बाद लक्ष्मी जी की प्रतिमा को बदरीनाथ मंदिर के गर्भगृह में रखा जाता है। इसके बाद यहां एक खास काम होता है, जिसके बारे में जानकर आपको हैरानी भी होगी और आप इस परंपरा को प्रणाम भी करेंगे। हर साल जब बाबा बदरीनाथ के कपाट बंद होते हैं, तो यहां एक खास काम किया जाता है। कुंवारी कन्याओं द्वारा ही ये काम किया जाता है। इसके अलावा कोई भी शख्स इस काम को नहीं कर सकता। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर वो क्या काम है, जिसे सिर्फ कुंवारी कन्याएं ही कर सकती हैं।
जिस दौरान बदरीनाथ के कपाट बंद होते हैं, उस दौरान पास के ही गांव माणा में कुंवारी कन्याओं के द्वारा एक कंबल तैयार की जाती है। इस कंबल को कपाट बंद होते वक्त बाबा बदरीनाथ को ओड़ाया जाता है। जी हां ये जिम्मेदारी सिर्फ कुंवाई लड़कियों कोे दी जाती है। दरअसल बदरीनाथ से महज दो किलोमीटर दूर देश का आखिरी गांव कहा जाने वाला माणा है। यहां की कुंवारी लड़कियों पर ही ये अहम जिम्मेदारी होती है। जिस दिन बाबा बदरीनाथ के कपाट बंद होते हैं, उस दिन माणा गांव की कुंवारी लड़कियां स्थानीय ऊन से ही एक शॉल तैयार करती हैं। इसे स्थानीय भाषा में बीना कम्बल कहा जाता है। इसे बेहद ही सलीके से तैयार किया जाता है। एक खास तरह की ऊन का इस्तेमाल कर इसे बाबा बदरीनाथ के लिए तैयार किया जाता है। कहा जाता है कि कपाट बंद होते वक्त बाबा बदरीनाथ को पहले घी का लेप लगाया जाता है।
इसके बाद उन्हें ये कंबल ओड़ाई जाती है। शीतकाल के दौरान 6 महीने तक बाबा बदरीनाथ इसी कंबल को ओड़े रहते हैं। मान्यता है कि शीत काल के दौरान बर्फ पड़ने से बाबा बदरीनाथ को ठंड ना लगे, इसलिए कुंवारी कन्याओं द्वारा इस कंबल को तैयार किया जाता है। ये एक ऐसा नियम है, जिसे जगतगुरू शंकराचार्य द्वारा बनाया गया था। जी हां सदियों पहले ये नियम बनाया गया था। कपाट खुलने के दिन यही अंगवस्त्र प्रथम प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है। कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत मां लक्ष्मी को परिक्रमा परिसर स्थित उनके मंदिर से गर्भगृह में भगवान बदरी विशाल के साथ विराजित किया गया। इससे पहले गर्भगृह से उद्वव जी और कुबेर जी की मूर्तियों को बाहर लाया गया। कुबेर की मूर्ति को बामणी गांव के नंदा देवी मंदिर में रात्रि विश्राम के लिए रखा गया।